राजनीति में कोई भी नेता , न तो देवी हो सकती है और न कोई देवता हो सकता है। राजनीति एक ऐसी छुआछूत की बीमारी है, जो भी इसके चपेट में आता है, वो पिछले सारे अच्छे कर्म और सेवा भूल कर , जनता को लूटना शुरू कर देता है। 1 % नेता को छोड़ कर सभी के सभी नेताओं की आमदनी देखें, उनका रहन सहन देखें। साथ में उनके रिश्तेदारों का भी रहन सहन में बेतहासा बदलाव आ जाता है।
नेतागिरी में ऐसा क्या है, जहाँ आमदनी दिन दूनी रात चौगनी बढ़ जाती है।
भाषा को भूल कर अमर्यादित भाषा का प्रयोग बढ़ जाता है।
जो नेता कल तक फटा हुआ पेंट पहन कर घूमता था, आज वो 20 लाख की गाड़ी में घूमता है।
ये सब ऐसा ही चलता रहेगा, जब तक जनता खुद नहीं समझेगी। जनता के पैसे पर पलने वाले ये लोग इसी जनता पर शासन करते हैं। खाते भी जानता का हैं और बजाते भी जानता को।
जिंदगी के छुए - अनछुए क्षण की कहानी !
क्या करूँ , क्या न करूँ ? यही सोच कर रह जाता हूँ . लेकिन मन बार बार यही कहता है , कुछ कर , कुछ कर . सोचता हूँ , अब नहीं , तो कब ? शरुआत तो कर !
Saturday, July 23, 2016
न देवी न देवता
Wednesday, May 25, 2016
Monday, May 16, 2016
Saturday, December 12, 2015
Sunday, November 15, 2015
मन की व्यथा
मन की व्यथा
रिंग
रिंग रिंग ......मोबाइल फ़ोन बज रहा था . वो भी सुबह ... सुबह 5 बजे ..........
बेटी ने
मुझे उठाया , “ पापा , फ़ोन है , ...............”
“हेल्लो,
कौन , मैंने बोला .
हम रवि
बोल रहे हैं भैया ....- मेरे छोटे भाई ने कहा.
क्या
हुआ , ऐसे घबराये क्यूँ हो .? कोई दिक्कत , इतनी सुबह – सुबह फ़ोन किया ...- मैंने
कहा.
हाँ, घर
पर मुंशी जी आये हैं , पुलिस स्टेशन से ...? – भाई ने कहा .
क्यूँ ?
कहा हुआ ? – मैंने पूछा
पिता जी
ने हम कर कैसी किये हैं, दूसरी माँ के साथ मिलकर . – उसने बताया
और
वारंट इशू हुआ है, जल्दी से कुछ कीजिये. – मेरे छोटे भाई ने फ़ोन पर गुस्से और डर
से बोला .
मैं
घबरा गया , क्या हो गया , कैसे हुआ ? मैं दिल्ली
में , वो बिहार में , कैसी मदद करूँ .
यही सोच
में पड़ गया . मैंने बोला , घबराओ मत, पता
करवाओ, माजरा क्या है, केस का फाइल निकलवाओ, मैं तुम्हे , एक घंटे में पटना में जानपहचान
के मुंशी जी का नंबर देता हूँ.
फ़ोन रखा
, और सोच में पड़ गया , ये सब कैसे और कब हो गया मुझे पता भी नहीं चला . मार्च 13
का महिना था , मुझे ऑफिस में भी काम था , परेशान था , मुझे पटना जाना पड़ेगा.
मुझे अब
पटना जाना बिलकुल भी पसंद नहीं था, क्यूँ जब से हमें हमारे पिता जी ने घर को लेकर
झगडा प्रारम्भ कर दिया. बहन की शादी के लिए मना कर दिया .
मुझे
बढ़ा आश्चर्य लगा की ये लोभी इतना भी गिर
सकते हैं. अपने ही बच्चे पर केस कर सकते हैं.
कोई बात
नहीं , अब मेरे काम और बढ़ गया था , केस को नक़ल निकलवाना .
जहाँ
तहां फ़ोन किये , तब जाकर कोर्ट में कोई जान का निकला . आज तक हम लोग कभी कोर्ट
कचहरी का चक्कर नहीं लगाए थे और लगता है की आम लोग कोई भी इसका चक्कर नहीं लगता है
. बेकार का चीज है .
एक
हफ्फ्ते बाद, जब हमारे पास नक़ल की कॉपी आई तो , मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी ,
हमारी सौतेली माँ ने, हम भाईओं पर चोरी , डकैती, रंगदारी का केस करवाया था, कमाल
तब तब और गया जब उसका दिन यानि केस का दिन देखा , वो दिन और जब मैंने अपने बहन की शादी
के लिए लड़का देखने गया था,
बड़ा ही
सोच समझ कर , तारीख तय की गयी थी , क्यूँ मैं बिहार बहुत कम जाता था , ऐसी में वो
केस नहीं कर प् रहे था. बेटी उनकी , शादी बेटे कर रहा था , फिर भी संतोष कहाँ. पूरी
सम्पति हड़प ली, फिर भी ...परेशांन करने में .....आगे .
चलो ,
जैसे तैसे , वेल करवाया, जमानत मिली , अब लगातार सालों से उस केस को झेलता आ रहा
हूँ,
हमने
कर्ज लेकर , जैसे तैसी बहन की शादी कर ली, कब तक कोर्ट का इन्तजार करते की , उसके
पिता , यानी हमारे पिता , अपनी बेटी की शादी करेंगे. उन्होंने साफ़ मना किया, मैं,
एक फूटी कौड़ी नहीं दूँगा. जो करना है करो.
हम लोग के
पास इतना पैसा नहीं था , की हम कुछ कर सके , कमाने खाने वाले हैं, किसी तरह से
परिवार के साथ रह रहे हैं . उसमे अग्गर हम कोर्ट कचहरी का चक्कर लगेंगे तो मर ही
जायेंगे.
ये
कहानी आज सब घर में हैं , कोई न कोई बिना बजह से परेशां कर रहा हैः, और समाज
चुपचाप देख रहा है.
ये सब
जो मैं लिख रहा हूँ. वो एक सत्य कहानी है , चाहे किसी से भी जुडा हुआ हो, मुझे आज तक अपने देश का कानून और और कानून के
रखवाले , पर विश्वास नहीं हो रहा है , क्या ऐसा हो सकता है , बिना सही से जांच
किये बिना , किसे के भी ऊपर केस कर सकते हहो.
अब आपकी
जिम्मेदारी है की आप साबित करो , आप सही हो. कोई भी इन्ससान किसी के ऊपर केस कर
सकता हैं, आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं .
आप के
पास परेशान होने के अलावा कोई उपाय नहीं हैं. समय , पैसा और रोजगार सब आपके पास से
ख़तम हो जायेंगे .
पता नहीं ऐसे सिर्फ हमारे देश में ही है और भी देश में। अगर ऐसा होता है तो गलत है.
बिना जुर्म किये , बिना गलती किये , बिना जाने , बिना पहचाने , आप किसी के भी ऊपर केस कर सकते हैं, चाहे सत्य हो या नही.
और हमारे देश की पुलिस बिना शुरूआती जाँच के आप पर केस को आगे बढ़ा सकती है.
आधे गवाह तो झूठे होते हैं आधे मनगढ़ंत।
ऐसे में समाज के लिए लोगों में रोष पैदा नहीं होगा तो क्या होगा।
आज यही हमारे देश की सबसे बढ़ी परेशानी है। इसे हम सबको मिलकर सुधारना है।
Thursday, October 22, 2015
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ !
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ ,
अब कुछ और नहीं ,
न अमित ,
न विजय ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ,
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ,
क्या रखा है राम में
क्या बचा है श्याम में
दाने -दाने के लिए
तरस रहा हूँ,
मैं दानों का फैक्ट्री लगाना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
देश क्या
समाज क्या ,
मैं कोई सैनिक नहीं बनना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
घिस गए तलवे
घिस गए घाओं के छाले
अब तो खून भी पानी बनना चाहता है
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
न बोलने की आजादी
न पूजा करने स्वंत्रता
शिक्षा में हर कोई
मिलावट करना चाहता हू
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
जहाँ बलिदान का भी आदर नहीं
देने वालों
वीवी -बच्चे गलियों में खाक
मजबूर होना चाहते हैं
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
मैं जलना नहीं ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ सुपुर्दे ख़ाक होना चाहता हूँ।
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
अब कुछ और नहीं ,
न अमित ,
न विजय ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ,
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ,
क्या रखा है राम में
क्या बचा है श्याम में
दाने -दाने के लिए
तरस रहा हूँ,
मैं दानों का फैक्ट्री लगाना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
देश क्या
समाज क्या ,
मैं कोई सैनिक नहीं बनना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
घिस गए तलवे
घिस गए घाओं के छाले
अब तो खून भी पानी बनना चाहता है
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
न बोलने की आजादी
न पूजा करने स्वंत्रता
शिक्षा में हर कोई
मिलावट करना चाहता हू
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
जहाँ बलिदान का भी आदर नहीं
देने वालों
वीवी -बच्चे गलियों में खाक
मजबूर होना चाहते हैं
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
मैं जलना नहीं ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ सुपुर्दे ख़ाक होना चाहता हूँ।
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
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