Thursday, October 22, 2015

मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ !

मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ ,
अब कुछ और नहीं ,
न अमित ,
न विजय ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ,
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ,

क्या रखा है राम में
क्या बचा है श्याम में
दाने -दाने के लिए
तरस रहा हूँ,
मैं दानों का फैक्ट्री लगाना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ
देश क्या
समाज क्या ,
मैं कोई सैनिक नहीं बनना चाहता हुँ.
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ

घिस गए तलवे
घिस गए घाओं के छाले
अब तो खून भी पानी बनना चाहता है
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ

न बोलने की आजादी
न पूजा करने स्वंत्रता
शिक्षा में हर कोई
मिलावट करना चाहता हू
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ

जहाँ बलिदान का भी आदर नहीं
देने वालों
वीवी -बच्चे गलियों में खाक
 मजबूर होना चाहते हैं
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ

मैं जलना नहीं ,
मैं तो सिर्फ और सिर्फ सुपुर्दे ख़ाक होना चाहता हूँ।
मैं अख़लाक़ बनना चाहता हूँ