राजनीति में कोई भी नेता , न तो देवी हो सकती है और न कोई देवता हो सकता है। राजनीति एक ऐसी छुआछूत की बीमारी है, जो भी इसके चपेट में आता है, वो पिछले सारे अच्छे कर्म और सेवा भूल कर , जनता को लूटना शुरू कर देता है। 1 % नेता को छोड़ कर सभी के सभी नेताओं की आमदनी देखें, उनका रहन सहन देखें। साथ में उनके रिश्तेदारों का भी रहन सहन में बेतहासा बदलाव आ जाता है।
नेतागिरी में ऐसा क्या है, जहाँ आमदनी दिन दूनी रात चौगनी बढ़ जाती है।
भाषा को भूल कर अमर्यादित भाषा का प्रयोग बढ़ जाता है।
जो नेता कल तक फटा हुआ पेंट पहन कर घूमता था, आज वो 20 लाख की गाड़ी में घूमता है।
ये सब ऐसा ही चलता रहेगा, जब तक जनता खुद नहीं समझेगी। जनता के पैसे पर पलने वाले ये लोग इसी जनता पर शासन करते हैं। खाते भी जानता का हैं और बजाते भी जानता को।
क्या करूँ , क्या न करूँ ? यही सोच कर रह जाता हूँ . लेकिन मन बार बार यही कहता है , कुछ कर , कुछ कर . सोचता हूँ , अब नहीं , तो कब ? शरुआत तो कर !
Saturday, July 23, 2016
न देवी न देवता
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