क्या करूँ , क्या न करूँ ? यही सोच कर रह जाता हूँ . लेकिन मन बार बार यही कहता है , कुछ कर , कुछ कर . सोचता हूँ , अब नहीं , तो कब ? शरुआत तो कर !
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